पुराना बस स्टैंड के ऊपर निर्माण कार्य के चर्चित विवादित मामले में, हाईकोर्ट ने, आदेश किया पारित….
धामनोद पुराना बस स्टैंड की पहली मंजिल को हटाने के साथ, ठेकेदार द्वारा बयाना राशि के रूप में जमा की गई राशि को लौटाने के दिए निर्देश ।
धामनोद//रिपोर्टर-दिव्येश सिंघल
धामनोद // धामनोद नगर में विगत कुछ महीनों से बहुचर्चित और विवादित भवन निर्माण जो कि, पुराना बस स्टैंड परिसर के छत के ऊपर किया जा रहा था, को लेकर विगत दिवस हाई कोर्ट द्वारा निर्माण कार्य रोकने हेतु स्टे आदेश जारी किया गया था। जिसे लेकर हाई कोर्ट द्वारा आदेश पारित कर , 3 महीने की अवधि में धामनोद पुराना बस स्टैंड की पहली मंजिल को हटाने के निर्देश के साथ ही, भवन निर्माण के लिए ठेकेदार द्वारा बयाना राशि के रूप में जमा की गई राशि को, 3 महीने की अवधि में लौटाने के दिए निर्देश
क्या था मामला-
यात्री प्रतीक्षालय का निर्माण सन 1992 में हुआ था, निर्माण को 27 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं । जबकि सिविल इंजीनियरिंग थ्योरी के अनुसार, इस प्रकार बनी कोई भी बिल्डिंग की उम्र 30 वर्ष ही होती है । वर्तमान में उक्त भवन की स्थिति अत्यंत ही दयनीय और जीर्ण शीर्ण होकर बहुत कमजोर अवस्था में आ चुका है । ऐसे में इस पर नया निर्माण कर वजन बढ़ाने से यह भवन कभी भी चरमरा कर ढह सकता है । चुंकि बस स्टैंड सर्वाधिक भीड़ भाड़ एवं चहल-पहल वाला इलाका है ऐसे मैं इससे बड़ी मात्रा में जनहानि का खतरा हमेशा बना रहेगा । सन 2008 में पुराने बस स्टैंड के ऊपर छत का विक्रय मोहम्मद रफीक को किया गया । जबकि उस पर उन्होंने भवन निर्माण करने के लिए अनुमति 10 जुलाई 2017 को प्राप्त की । अनुमति में नगर पंचायत ने स्पष्ट लिखा है कि, 1 वर्ष के भीतर निर्माण पूर्ण कर लिया जाए अन्यथा अनुमति निरस्त मानी जाएगी।
इस हिसाब से 10 जुलाई 2018 को उक्त अनुमति स्वयं ही समाप्त हो चुकी है । जिसके 1 साल बाद अब अनुमति की समय सीमा खत्म हो जाने के बाद भी निर्माण कार्य किया जा रहा है ।
क्या है शर्तनामा-
याचिकाकर्ता वार्ड क्रमांक 12 के पार्षद
सतीश चौधरी ने बताया कि, हमने आरटीआई से नगर पंचायत से उक्त सौदे के शर्तनामे की प्रतिलिपि प्राप्त की थी । इस शर्तनामे में कुछ खास 4 बिंदु यहां उल्लेखनीय है ।
1) छत की नीलामी मध्य प्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1
961 की धारा 109 में वर्णित अचल संपत्ति अंतरण नियमों के अनुसार होगी ।
2) यदि पट्टा ग्रहिता द्वारा 3 माह तक किराया जमा नहीं कराया जाता है, तो उस दशा में नगर पंचायत छत का आधिपत्य प्राप्त करने हेतु स्वतंत्र रहेगी ।
3) नीलामी समाप्ति एवं स्वीकृति पर विधिवत रूप से विकृत संपत्ति का पंजीयन अनिवार्य है । जिसका व्यय स्वयं बोलीदार को वहन करना होगा ।
4) उक्त नीलामी , शासन स्वीकृति के अधीन होगी जो दोनों पक्षों को मानने रहेगी ।
आगे सतीश चौधरी ने बताया कि उक्त चारों बिंदुओं में से दूसरे बिंदु के तहत, संबंधित व्यक्ति द्वारा किराए की राशि 2008 से लेकर 2017 तक जमा नहीं कराई गई । लगातार 9 वर्षों तक मासिक किराया भुगतान न होने की वजह से स्वतः ही यह शर्तनामा अथवा अनुबंध निरस्त हो जाता है । तीसरे बिंदु के अ
नुसार , संबंधित व्यक्ति को उक्त छत के क्रय करने का पंजी
यन कराना भी अनिवार्य था । लेकिन उसने आज तक भी पंजीयन की कोई कार्रवाई नहीं की है । इस स्थिति में भी उक्त सौदा स्वयं ही निरस्त हो जाता है । बावजूद इसके संबंधित व्यक्ति द्वारा, दादागिरी एवं मनमानी पूर्ण रवैया के साथ निर्माण कार्य किया जा रहा है ।इसे लेकर उन्होंने आपत्ति दर्ज कराते हुए, मुख्य नगर पंचायत अधिकारी को लिखित आवेदन भी दिया । लेकिन बावजूद इसके ना तो ठेकेदार द्वारा निर्माण कार्य रोका जा रहा है ना ही नगर प्रशासन द्वारा । जिसके बाद वे उच्च न्यायालय की शरण में पहुंचे । जिसे लेकर माननीय उच्च न्यायालय ने स्टे आदेश करते हुए, निर्माण कार्य पर रोक लगा दी थी । याचिकाकर्ता सतीश चौधरी की ओर से पैरवी अधिवक्ता मोहनलाल पाटीदार ने की ।
इस मामले को लेकर हाई कोर्ट इंदौर में न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर ने आदेश पारित कर, नगर पालिका माया मंडलोई जो व्यक्तिगत रूप से उपस्थित थे। जिसके समक्ष एक प्रश्न रखा गया की, बस स्टैंड धामनोद के भवन की पहली मंजिल की संरचना को बिना किसी कठिनाई के हटाया जा सकता है,
जिसमें सीएमओ माया मंडलोई ने संतोषपूर्वक जवाब देकर बताया कि यह संभव है, अगर सावधानी से किया जाए । जिसके तहत हाई कोर्ट द्वारा निर्देशित किया गया है कि,याचिका का निपटान प्रतिवादी संख्या 4 को बस स्टैंड, धामनोद की पहली मंजिल को हटाने के निर्देश दिए गए , जिसका निर्माण पहले किया गया था। साथ ही भवन के निर्माण के लिए ठेकेदार द्वारा बयाना राशि के रूप में जमा की गई राशि को, 3 महीने की अवधि के भीतर वापस कर दिया जाए निर्देश जारी किए गए। इस संबंध में आईआईटी इंदौर पहले ही रिपोर्ट दे चुका है, यह सुरक्षित निर्माण नहीं है।